उर्स का पाक महिना और अकीदत के फूल

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जयपुर (प्रकाश शर्मा)। राजस्थान वो सूबा है, जहां हिंदुस्तान की गंगा-जमुना की तहजीब के दीदार होते हैं। जी हाँ यह वो जगह है जहाँ दुनिया भर के लोग बड़ी अकीदत से अपना सर झुकाते हैं। यहाँ किसी मजहब की नहीं इंसानियत की बात होती है और वो पाक जगह है अजमेर स्थित ख़्वाजा गरीब नवाज का दर। ख़्वाजा ग़रीब नवाज के 803 वे उर्स के मौके पर देश और दुनिया के लोग इस पाक महीने मे अपनी मुराद पूरी करने के लिए ख़्वाजा साहब के दरवार मे चादर चढ़ाने आते है। गुलाब के फूलों और इत्र की महक दरगाह मे रूहानी समां बना देती है। उर्स का यह पाक महिना अकीदतमंदों के लिए बहुत खास रहता है।

ख़्वाजा गरीब नवाज के चौखट पर सालाना उर्स का झंडा बुलंद होते ही शुरू होता है सालाना जश्न। जश्न के साथ ही शुरू होता है देश और दुनिया से आये जायरीनों का ख़्वाजा साहब की मज़ार पर अकीदत के फूलों की चादर चढ़ाने का सिलसिला। दरबार मे आये ज़ायरीन चाहे किसी भी मज़हब के हो उनका मकसद सिर्फ एक ही रहता है कि अपने अकीदत के फूलों को ख़्वाजा साहब कर दरबार मे अपनी अकीदत के साथ चढ़ाये और गरीब नवाज के दर पर दस्तक दे। यह दस्तूर उर्स के पूरे महीने रहता है। अकीदत के फूल चढ़ाने का यह सिलसिला उर्स के इस पाक महिने ही नहीं पूरे साल बदस्तूर चलता रहता है।

सूफियाना शहर

ख़्वाजा साहब उन तमाम दस्तावेजों से, जिनमे इंसानियत की खुशबू आती है। राजस्थान के अजमेर शहर की तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी मे ख़्वाजा साहब की मजार इंसानियत की एक मिसाल है। बिलकुल फ़क़ीर अंदाज मे अजमेर आये ख़्वाजा साहब इंसानियत की इबादत लिख गए और मदीने के बाद अजमेर ही ख़्वाजा साहब की सरजमीं रही। सूफियाना शहर अजमेर मे ख़्वाजा शरीफ की दरगाह है और यहाँ मोहब्बत की हवाएँ बहती है। हवाओँ से  सीधा ताल्लुक इंसानियत से होता जाता है और फिर यहाँ ख़्वाजा साहब की मेहर बरसती है।

ख़्वाजा की चौखट

अजमेर शरीफ एक ऐसा पाक-शफ़्फ़ाक नाम है, जिसे सुनने से ही रूहानी सुकून मिलता है। अजमेर शरीफ मे हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह की मज़ार की जियारत कर दरूर-ओ-फ़ातेहा पढ़ने की चाहत हर ख़्वाजा के चाहने वाले की होती है। ख़्वाजा साहब की मजार पर दुआओं का डंका बजता है, मजार शरीफ पर रोज़ाना रस्म-रिवाज़ को अदा किया जाता है।

जन्नत का रास्ता

गरीब नवाज की मजार पर एक ऐसा रास्ता है, जिसको जन्नती रास्ता कहा जाता है और इस रास्ते से गुजरने वाले हर इंसान की तक़दीर बदल जाती है। कहा जाता है कि ख़्वाजा साहब खुद इस रास्ते से आया-जाया करते थे। यह जन्नती रास्ता साल मे सिर्फ चार बार ही खुलता है।उर्स के छह दिनों मे लाखों लोग देश -विदेश से ज़ियारत करने के लिए यहाँ आते है।

हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह सूफ़ी संत थे, उन्होंने 12 वी शताब्दी मे अजमेर मे चिश्ती परम्परा की स्थापना की और हिंदुस्तान पहुँचने के बाद भाईचारे का संदेश दिया। हज़रत ख़्वाजा सूफियाना शहर मे ख़्वाजा साहब की दरगाह पर अपने अकीदत के फूल चढ़ाने से कितना सुकून मिलता और गरीब नवाज के दर पर आने वाले हरेक अकीदतमंद की मुराद क्या सच में पूरी होती है? यह तो आप अजमेर आकर ही जान सकते हैं।

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