दारिया एनकाउंटर मामले में बयानों से पलटी दारा की विधवा
जयपुर। दारा सिंह उर्फ दारिया एनकाउंटर प्रकरण में अभियोजन पक्ष के गवहों का पक्षद्रोही होना निरंतर जारी है। शुक्रवार को जिले की सत्र अदालत ...
https://khabarrn1.blogspot.com/2014/10/widow-of-dara-singh-sushila-devi-turnaround-her-statements-in-daria-encounter-case.html
जयपुर। दारा सिंह उर्फ दारिया एनकाउंटर प्रकरण में अभियोजन पक्ष के गवहों का पक्षद्रोही होना निरंतर जारी है। शुक्रवार को जिले की सत्र अदालत में दारासिंह की विधवा सुशीला देवी और भतीजी सुनीता सीबीआई को दिए अपने बयानों से पलट गई। इस पर अदालत ने दोनों गवाहों को पक्षद्रोही घोषित करते हुए सीबीआई को इनसे जिहर करने की अनुमति दी है।
सुशीला देवी ने अदालत में बताया कि उसे मामले में दर्ज एफआईआर के बारे में कुछ नहीं पता है। दारा की तलाश में पुलिसकर्मी आखिरी बार 26 सितंबर 2006 को आए थे। इसके बाद एसओजी टीम के आने का उसे पता नहीं। इसके अलावा उसके या उसके परिजनों ने कोई रिपोर्ट कराई या नहीं इसका भी उसे नहीं पता।
सुशीला देवी ने मजिस्ट्रेट के सामने पेश परिवाद और हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के बारे में भी अनभिज्ञता जताई।
वहीं उच्चतम न्यायालय में शपथ पत्र पेश करने के संबंध में सुशीला ने कहा कि उसने केवल हस्ताक्षर किए थे। सुनवाई के दौरान सुशीला देवी ने अदालत को यह भी बताया कि उसके अधिवक्ता उसे करीब 6 माह से परेशान कर रहे हैं। वह केस उनसे वापस लेना चाहती है, लेकिन वे उसे एनओसी ही नहीं दे रहे हैं।
वहीं सुशीला के अधिवक्ता एसएस पूनिया ने अदालत में अलग से प्रार्थना पत्र दायर कर कहा कि मामले में आरोपियों ने पीड़िता से राजीनामा कर लिया है, जिसके चलते मुझ पर भी दवाब डाला जा रहा है। इसके साथ ही जान से मारने की धमकी भी दी जा रही है। ऐसे में वह मामले से अपने आप को अलग करना चाहता है।
सुनवाई के दौरान अदालत के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने अदालत कक्ष से आरोपियों के परिजनों सहित अन्य सभी को बाहर निकाल दिया। अदालत में केवल आरोपी और उनके अधिवक्ता ही मौजूद रहे। इन कर्मचारियों ने बताया कि न्यायाधीश केके बागडी ने मौखिक आदेश जारी कर ऐसी व्यवस्था बनाने को कहा है। हालांकि इस व्यवस्था से वकीलों में काफी रोष है।
वकीलों का कहना है कि अदालत खुले तौर पर चलती है। हर फैसले में पीठासीन अधिकारी इसका हवाला भी देते हैं। केवल दुष्कर्म के मामलों में ही बंद कमरे में सुनवाई चलती है। ऐसे में पीठासीन अधिकारी केके बागडी का यह आदेश तानाशाही जैसा है।
अब तक ये पलटे बयानों से : सुशीलादेवी, सुनीता, जगदीश पूनिया, अनिलकुमार, सुरेशकुमार, देवकरण, प्रतापसिंह, कंडक्टर ख्यालीराम, आईपीएस गोरधनलाल मीणा, विष्णुकुमार गौड, अमीलाल, अशोक विश्नोई, बाबूलाल सहित अन्य।
सुशीला देवी ने अदालत में बताया कि उसे मामले में दर्ज एफआईआर के बारे में कुछ नहीं पता है। दारा की तलाश में पुलिसकर्मी आखिरी बार 26 सितंबर 2006 को आए थे। इसके बाद एसओजी टीम के आने का उसे पता नहीं। इसके अलावा उसके या उसके परिजनों ने कोई रिपोर्ट कराई या नहीं इसका भी उसे नहीं पता।
सुशीला देवी ने मजिस्ट्रेट के सामने पेश परिवाद और हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के बारे में भी अनभिज्ञता जताई।
वहीं उच्चतम न्यायालय में शपथ पत्र पेश करने के संबंध में सुशीला ने कहा कि उसने केवल हस्ताक्षर किए थे। सुनवाई के दौरान सुशीला देवी ने अदालत को यह भी बताया कि उसके अधिवक्ता उसे करीब 6 माह से परेशान कर रहे हैं। वह केस उनसे वापस लेना चाहती है, लेकिन वे उसे एनओसी ही नहीं दे रहे हैं।
वहीं सुशीला के अधिवक्ता एसएस पूनिया ने अदालत में अलग से प्रार्थना पत्र दायर कर कहा कि मामले में आरोपियों ने पीड़िता से राजीनामा कर लिया है, जिसके चलते मुझ पर भी दवाब डाला जा रहा है। इसके साथ ही जान से मारने की धमकी भी दी जा रही है। ऐसे में वह मामले से अपने आप को अलग करना चाहता है।
सुनवाई के दौरान अदालत के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने अदालत कक्ष से आरोपियों के परिजनों सहित अन्य सभी को बाहर निकाल दिया। अदालत में केवल आरोपी और उनके अधिवक्ता ही मौजूद रहे। इन कर्मचारियों ने बताया कि न्यायाधीश केके बागडी ने मौखिक आदेश जारी कर ऐसी व्यवस्था बनाने को कहा है। हालांकि इस व्यवस्था से वकीलों में काफी रोष है।
वकीलों का कहना है कि अदालत खुले तौर पर चलती है। हर फैसले में पीठासीन अधिकारी इसका हवाला भी देते हैं। केवल दुष्कर्म के मामलों में ही बंद कमरे में सुनवाई चलती है। ऐसे में पीठासीन अधिकारी केके बागडी का यह आदेश तानाशाही जैसा है।
अब तक ये पलटे बयानों से : सुशीलादेवी, सुनीता, जगदीश पूनिया, अनिलकुमार, सुरेशकुमार, देवकरण, प्रतापसिंह, कंडक्टर ख्यालीराम, आईपीएस गोरधनलाल मीणा, विष्णुकुमार गौड, अमीलाल, अशोक विश्नोई, बाबूलाल सहित अन्य।