दशहरा पर्व : दसों पापों को हरने वाला त्यौहार

त्यौहार लोक जीवन की प्रगाढ़ता के केन्द्र बिन्दु माने जाते हैं। यह न केवल हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक जीवन को प्रभावित करते हैं वर...

त्यौहार लोक जीवन की प्रगाढ़ता के केन्द्र बिन्दु माने जाते हैं। यह न केवल हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक जीवन को प्रभावित करते हैं वरन इनके साथ हमारी आर्थिक गतिविधियाँ भी पूरी तरह से जुड़ी हुई हैं। त्यौहार पग पग पर व्यक्ति को समाज के साथ जोड़ते हैं। प्रकृति के बदले परिधानों के साथ जुड़े त्यौहार फूलों के बदलते रंगों की भाँति व्यक्ति को लुभाते रहते हैं। इनकी विविधता मानव को अपने मोहपाश में बाँधे रखती है।

त्यौहार के एक एक क्षण को प्रत्येक व्यक्ति पूरे उत्साह के साथ जीना चाहता है। वैदिक परम्परा में जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षण अज्ञान से बाहर निकल कर ज्ञान प्राप्ति अथवा मुक्ति का क्षण माना गया है। इसी क्षण को मुहूर्त भी कहा गया है। इस परम्परा के सर्वोपरि मुहूर्तों में सबसे महत्त्वपूर्ण मुहूर्त दशहरा है। दशहरा का अर्थ है, वह पर्व जो दसों प्रकार के पापों को हर ले। इस दिन को विजय दशमी का दिन भी स्वीकार किया गया है।

एक मान्यता के अनुसार आश्विन शुक्ला दशमी को तारा उदय होने के समय विजय नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है। यह वह क्षण है जब दशेंद्रियों पर सम्पूर्ण विजय प्राप्त कर मानव जीवन की सीमाओं का उल्लंघन कर ज्ञान प्राप्त करता है। इसीलिए दशहरे के पर्व को ‘सीमोल्लंघन’ के नाम से भी पुकारा जाता है।

पूर्वी भारत में यह ‘बिजोया’ नव वर्ष की भाँति उल्लास से नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। यहाँ इसे मां भगवती की महिषासुर पर विजय का प्रतीक माना जाता है। विजयदशमी का त्यौहार वर्षा ऋतु की समाप्ति तथा शरद के आगमन की सूचना देता है। ब्राह्मण इस दिन सरस्वती का पूजन करते हैं जबकि क्षत्रिय शास्त्रों की पूजा करते हैं।

अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में यह त्यौहार सदियों से भारत के कोने कोने में मनाया जाता है। सीधे सरल रूप से भारतीय जनमानस ने यह स्वीकार कर लिया है कि इस दिन भगवान राम ने असुर रावण पर विजय पाई थी, जबकि अनेक विद्वान इस बात को भ्रामक मानते हैं। कुछ का मत है कि रावण का वध कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ। किसी भी धर्मग्रन्थ में क्वार शुक्ल विजयदशमी को रावण के वध का उल्लेख नहीं मिलता।

वैदिक शास्त्रों में वर्णित ब्राह्मण परम्पराओं के त्यौहारों में दशहरे का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। इस प्रकार यह वैदिक या ब्राह्मण परम्परा का उत्सव नहीं है। लगता है कि रामायण कि लोकप्रियता के कारण क्षत्रियों ने इसे अपने विजयाभिमान का प्रतीक बना कर मनाना प्रारम्भ किया होगा। इसीलिए इस उत्सव को अधिकार राजघरानों का संरक्षण प्राप्त हुआ। अनेक विद्वानों ने इस पर्व को महाभारत के साथ जोड़ा है।

उनका मत है कि जब पाण्डव अज्ञातवास के दौरान विराट नगरी में रह रहे थे तब कौरवों ने विराट के महाराजा की गाओं का हरण करके पाण्डवों को अज्ञातवास से बाहर आने के लिए बाध्य किया। क्वार सुदी दशमी के दिन वृहन्नला के रूप में अर्जुन ने पहली बार कौरवों से युद्ध करके उन्हें हराया। यह अधर्म पर धर्म की विजय का द्योतक माना गया और दशमी के इस दिन को विजय दशमी के रूप में मनाया जाने लगा।

दशहरा भारत के उन त्यौहारों में से है, जिसकी धूम देखते ही बनती है। बड़े-बड़े पुतले और झांकियां इस त्यौहार को रंगा-रंग बना देती हैं। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों के रूप में लोग बुरी ताकतों को जलाने का प्रण लेते हैं। दशहरे के दिन हम तीन पुतलों को जलाकर बरसों से चली आ रही परपंरा को तो निभा देते हैं, लेकिन हम अपने मन से झूठ, कपट और छल को नही निकाल पाते। हमें दशहरे के असली संदेश को अपने जीवन में भी अमल में लाना होगा, तभी यह त्यौहार सार्थक बन पाएगा।



बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक इस दशहरा पर्व पर आप सभी को Rajasthan News1 टीम की और हार्दिक शुभकामनाएं।

 

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