पत्रकारिता के समाज में फैलता जा रहा है "फर्जी" नामक घातक वायरस

जयपुर ( पवन टेलर )। देश के चौथे स्तम्भ के रूप में पहचाने जाने वाला क्षेत्र पत्रकारिता, जो कभी सम्मान और सेवा का कार्य हुआ करता था, आज क...

जयपुर (पवन टेलर)। देश के चौथे स्तम्भ के रूप में पहचाने जाने वाला क्षेत्र पत्रकारिता, जो कभी सम्मान और सेवा का कार्य हुआ करता था, आज के मौजूदा परिपेक्ष्य में इन दिनों आ रही नित-नए अख़बारों और न्यूज चैनलों की बाढ़ की वजह से अपनी असली पहचान खोता जा रहा है और व्यावसायिकरण की भेंट चढ़ता जा रहा है। पत्रकारिता में बढ़ते व्यावसायिकरण के चलते ही अब इस क्षेत्र में ऐसे लोगों का भी पदार्पण होता जा रहा है, जिनका किसी भी तरह से कहीं दूर-दूर तक ना तो किसी 'पत्र' से ही कोई सरोकार है और ना ही 'कारिता' से कभी वास्ता पड़ा है।

प्रदेश की राजधानी जयपुर में तो आलम कुछ और ही नजर आने लगा है। यहां कुछ संस्थानों में कार्य करने की दुहाई देकर फील्ड में घूमते कुछ युवक-युवतियां तो सिर्फ ऐसी जगहों पर ही नजर आते हैं, जहां कोई सेलिब्रिटी आ रही हो। सेलिब्रिटी से सम्बंधित किसी कार्यक्रम में इस तरह के 'युवा-पत्रकार' सिर्फ और सिर्फ सेलिब्रिटी के साथ अपनी फोटो खिंचवाने के लिए आते हैं, जिसे बड़े चाव के साथ सोशल नेट्वर्किंग साइट पर सबसे पहले डालते हैं। अब भले ही उस कार्यक्रम की कवरेज हो ना हो और उसकी खबर लगे ना लगे इससे उनका कोई सरोकार नहीं होता। हो भी क्यों उनका सरोकार तो बस एफबी पर फोटो अपलोड करने का होता है, जिसे वे बखूबी पूरा कर लेते हैं।

मजेदार बात या फिर यूँ कहें कि पत्रकारिता को शर्मिंदा करने की बात तो ये है कि इस तरह के 'युवा-पत्रकार-पत्रकारिणियों' में से कुछेक तो ऐसे भी हैं, जो कुछ समय पूर्व कहीं ना कहीं छिछोरी हरकतें करते हुए देखे जा चुके हैं। अब ऐसे लोगों के हाथ में किसी न्यूज चैनल का लोगो कितना सुन्दर और सौम्य लगता होगा होगा, इस बात का अंदाजा आप अच्छी तरह से लगा सकते हैं।

खास बात तो ये है कि इस तरह के 'युवा-पत्रकार-पत्रकारिणियों' में से अधिकतर तो ऐसे हैं , जो सिर्फ और सिर्फ अपना रौब झड़ने के लिए जान-बूझकर मोटर-साइकिल को ना सिर्फ बिना हैलमेट के ही चलते हैं, बल्कि पीछे वाली सीट पर भी किसी पत्रकारिणी को बिना हैलमेट के बैठाकर मोटर-साईकिल को हवाई जहाज समझने लग जाते हैं या फिर यूं भी कह सकते हैं कि खुद ही हवाई जहाज हो जाते हैं।

खैर, ऐसे में इस बारे में जितना कहा जाये मेरे ख्याल से काम ही होगा। बहरहाल, ऐसे में पत्रकारिता के क्षेत्र में बढ़ते जा रहे व्यावसायिकरण के चलते ना सिर्फ इस तरह के 'युवा-पत्रकार-पत्रकारिणियों' की फ़ौज ही खड़ी की जा रही है, बल्कि इनको पनाह देने के लिए भी ऐसे ही लोग इस क्षेत्र में अपने-अपने संस्थान खोलते जा रहे हैं, जिनका पत्रकारिता से कोई भी वास्ता नहीं रहा है। हाँ, इतना जरूर है कि उनके पास किसी न किसी तरह का सिर्फ पैसा जरूर है, भले ही वो कोई से भी नंबर का हो या तो 1 या फिर 2। इसी तरह के कई संस्थानों में से तो कुछ ऐसे भी हैं जो सिर्फ पैसा लेकर किसी को भी PRESS का बस कार्ड बनाकर दे देते हैं और फिर उस कार्ड का चाहे जैसा इस्तेमाल हो उसकी उन्हें परवाह नहीं होती।

इस तरह से पत्रकारिता के क्षेत्र में फैलते जा रहे कचरे के चलते ही अब कई जगहों पर पत्रकारों की कुछ संस्थाओं के द्वारा प्रशंसनीय पहल की जाने लगी है और इस तरह के 'युवा-पत्रकार-पत्रकारिणियों' पर लगाम कसने के लिए पुलिस-प्रशासन से भी सामंजस्य स्थापित किया जा रहा है, जिससे इस क्षेत्र में फैलते जा रहे वायरस को समाप्त किया जा सके। इसके अतिरिक्त अवेयरनेस के लिए पत्रकारों के द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइट्स और मोबाइल एप्लिकेशंस पर भी जागरूकता के सन्देश भेजे जा रहे हैं, जिनमे "पत्रकारिता को बदनाम करने वालों पर पुलिस की पेनी निगाह, प्रेस लिखी हुई अवैध गाड़ियों को सीज कर, प्रेस कार्ड की जाच समेत  कई तरह के मुद्दों पर चर्चा की जाने लगी है, जिससे लगता है की जल्द ही इस तरह के 'युवा-पत्रकार-पत्रकारिणियों' अथवा फर्जी पत्रकारों पर शिकंजा कस जा सकेगा और पत्रकारिता के समाज में फ़ैल रहे इस 'फर्जी' नामक वायरस को समाप्त किया सकेगा।

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