मेरे पिता ही मेरे प्रिय शिक्षक : कैलाश खेर
मुंबई। गायक कैलाश खेर आज जिस मुकाम पर हैं यहां तक पहुंचने में उन्हें बहुत संघर्ष का सामना करना पड़ा। यूं ही उन्हें सब कुछ आसानी से हासिल ...
इतनी लोकप्रियता हासिल करने के बाद भी कैलाश आज बहुत ही विनम्र स्वभाव के हैं। शायद यही है उनकी सफलता का राज़। या उनके गुरु, उनके पिता की दी हुई शिक्षा औरआशीर्वाद का ही नतीज़ा। कौन हैं उनके गुरु, किसने सिखाया उन्हें जिन्दगी का पाठ। यह जानने के लिए जब हमने उनसे बातचीत की कि 5 सितम्बर यानि 'टीचर्स डे' के मौके पर वो अपने किस गुरु को श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के कुछ मुख्य अंश :
आपके पसंदीदा शिक्षक कौन हैं और आपने उनसे क्या सीखा ?
मैं अपने को बहुत ही भाग्यशाली मनाता हूँ, क्योंकि मेरे पिता ही मेरे सबसे प्रिय और आदर्श शिक्षक हैं। उन्होंने हमेशा ही मेरी मदद की। मेरे उनसे रिश्ते भी बहुत करीबी और सौहार्दपूर्ण रहे। जब भी मुझे उनकी जरुरत महसूस हुई वो मेरे पास रहे। बचपन में जब भी मैंने कोई भी गलती की तो उसके लिए उन्होंने मुझे डांटा कभी नहीं, इसके विपरीत, उन्होंने मुझे हमेशा बहुत ही प्यार से समझाया और उनके परिणामों के बारें में बहुत ही बारीकी से समझाया। मेरे पिता बहुत ही आशावादी थे और यही दृष्टिकोण उन्होंने मुझे दिया। उन्होंने मुझे बताया कि जीवन में कुछ भी कार्य करने से पहले हमेशा उसके परिणाम के बारे में सोचना चाहिए। उनका दिया हुआ यह सबक मैं कभी भी नहीं भूल सकता।
आपकी राय में एक आदर्श शिक्षक कैसा होना चाहिए ?
जैसा की मैंने पहले भी कहा कि एक शिक्षक और उनके छात्र के बीच हमेशा ही सौहार्दपूर्ण संबंध होने चाहिए। मैं अपने कुछ व्यक्तिगत अनुभव आपको बताता हूँ। जब मैं दिल्ली में था तब मैंने एक स्कूल में एक संगीत शिक्षक के रूप में काम किया था। उस समय मैं अपनी स्नातक स्तर की पढ़ाई भी कर रहा था। उस दौरान मैं अपने क्लास के बच्चों को केवल संगीत ही नहीं सिखाता था बल्कि मेरे सम्बन्ध उनके साथ आत्मीय थे। इसलिए वो मेरे साथ अपनी परेशानीयां भी बांटते थे। आज भी मैं उस क्लास के बच्चों से जुड़ा हुआ हूँ। हालांकि आज वो बच्चे नहीं आज वो अपने अपने क्षेत्र में कामयाब हैं और अपनी कामयाबी मेरे साथ आज भी बांटते हैं। मुझे फोन करते हैं, मिलते है तो बहुत ही अच्छा लगता है।
एक सलाह जो आप शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर सभी शिक्षकों को देना चाहेगें?
आज लगभग हर माता-पिता बाहर काम करने जाते हैं तो ऐसे में आज शिक्षकों की दोहरी जिम्मेदारी हो गई है कि अपने छात्रों के प्रति, वे उन्हें न केवल किताबी शिक्षा दे बल्कि आज सबसे ज्यादा जरुरत है युवा मन को शिक्षित करने की। बस यही करके शिक्षक अपना धर्म निभा सकते हैं।
युवाओं को कुछ सन्देश जो उन्हें उनके संघर्ष के दिनों में आगे बढ़ने की हिम्मत दे?
"हारिये न मानिए हिम्मत बिसारिये न राह " संघर्ष के बिना जिन्दगी कैसी? हर किसी को संघर्ष तो करना ही पड़ता है लेकिन इससे निराश होने की बजाए आगे बढ़ते रहना ही जिन्दगी है। युवा पीढ़ी को आज अनुशासन और सीमा रखना बहुत ही जरुरी है। साथ में अपनी जड़ों को कभी नही भूलना चाहिये।