दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब नहीं 'सत्या-2'
https://khabarrn1.blogspot.com/2013/11/satya-2-is-not-thrive-in-keeping-viewers-engrossed.html
कलाकार : पुनीत सिंह रत्न, मृणाल जैन, अनिका सोनी, महेश ठाकुर, अमृतयन,
निर्माता : अरुण कुमार शर्मा,
एस. कुमार रेड्डी
निर्देशक : राम गोपाल वर्मा
गीत : राधिका आनंद,
संगीत : संजीव दर्शन राठौर
निर्माता : अरुण कुमार शर्मा,
एस. कुमार रेड्डी
निर्देशक : राम गोपाल वर्मा
गीत : राधिका आनंद,
संगीत : संजीव दर्शन राठौर
इसे फ़िल्म सत्या की सीक्वल क्यों कहा जा रहा है, यह बात भी समझ से परे है। कहानी लोगों को बांधकर रखने में बहुत कामयाब नहीं दिख रही। गाने भी बेवजह फिल्म की रफ्तार रोकते हैं। यही फिल्म का कमजोर पक्ष है। इंटरवल से पहले किरदारों को बताने में रामू ने काफी वक्त खराब किया, तो वहीं इंटरवल के बाद जबर्दस्त खूनखराबा ठूंसा गया है। ऐसा कोई गाना नहीं जिसका जिक्र किया जाए।
फ़िल्म की कहानी में सत्या (पुनीत सिंह रत्न) मुंबई में खास दोस्त नारा (अमृतयन) के पास आया। सत्या को नए सिरे से जिंदगी शुरू करनी है। नारा फिल्म मेकिंग में स्ट्रगल कर रहा है। उसके पास कहानी और आइडिया तो बहुत हैं, लेकिन पैसा लगाने वाला कोई नहीं। नारा के साथ खास दोस्त रहती है, जो एक्ट्रेस बनने का सपना लेकर आई है। सत्या को शहर के नामी बिल्डर लोहाटी (महेश ठाकुर) के यहां काम मिल जाता है, लोहाटी का संपर्क दुबई तक है, जहां बैठे आकाओं के इशारों पर बिल्डर काम करता है।
शहर की पॉश प्रॉपर्टी पर कब्जे के लिए लोहाटी शहर के नामी गैंगस्टर आरके की मदद लेता है। लेकिन आरके एसीपी के खौफ के चलते लोहाटी का काम करने से इनकार करता है। साथ ही, वह दूसरे बिल्डरों से भी रिश्ते खराब नहीं करना चाहता। यहीं सत्या की एंट्री होती है, जो लोहाटी के रास्ते में आने वाले हर कांटे को खत्म करने का प्लान बनाता है। एसीपी के साथ दूसरे बिल्डर का मर्डर होता है और सत्या आरके और लोहाटी का खास आदमी बन जाता है।
सत्या के किरदार में पुनीत सिंह रत्न ठीक-ठाक रहे हैं। उनकी डायलॉग डिलिवरी बेहतरीन है, लेकिन लुक किरदार पर फिट नहीं बैठता। इंटरवल के बाद वह कई सीन्स में खूब जमे हैं। लोहाटी के किरदार में महेश ठाकुर ने अच्छा काम किया है। अन्य कलाकारों में अनिका और अमृतयन प्रभावित करते हैं।