दुनियाभर में इकलौता मंदिर, जहां अकेले हैं श्रीराम

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आस्था के विधि रंगों से सराबोर हमारे देश भारत के विभिन्न प्रांतों में स्थित विभिन्न मंदिरों में से कई मंदिरों में उनकी विशेषताओं को लेकर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, जो उन मंदिर में विराजे देवताओं के आगे श्रद्धाभाव से नमन करते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए प्रार्थना करते हैं। इन्हीं मंदिरों में से एक है, राजस्थान के माउंटआबू में स्थित सर्वेश्वर रघुनाथ मंदिर।

माउंटआबू के सर्वेश्वर रघुनाथ मंदिर में भगवान राम की 5,500 साल पुरानी स्वयंभू मूर्ति है। दुनियाभर में रघुनाथ यानि भगवान राम की यह इकलौती मूर्ति है, जहां भगवान राम अकेले है। यहां रघुवर (राम) के साथ न तो उनकी सिया (सीता) और न ही उनके भाई लक्ष्मण की मूर्ति है। भगवान राम की नगर परिक्रमा की ये परंपरा 400 साल पुरानी है जो अब तक चली आ रही है।

400 साल पहले जगदगुरु स्वामी रामानांदचार्य ने इस मूर्ति का जीर्णोद्धार कर इसे सर्वेश्वर रघुनाथ मंदिर के रुप में स्थापित किया था। भगवान राम की स्वयंभू मूर्ति रामानंदाचार्य ने स्थापित की और उसके बाद से ये मंदिर सर्वेश्वर रघुनाथ मंदिर के नाम से जाना गया। सर्वेश्वर यानि सभी के ईश्वर, पालनहार भगवान राम है। इसलिए उनका नाम सर्वेश्वर पड़ा।

इस मंदिर में भगवान राम की जिस दिव्य स्वयंभू मूर्ति को आप देखते हैं, वह माउंटआबू के नक्ली झील से निकली है। इसी मंदिर के प्रांगण में स्थित प्राचीन रामकुंड है। इस रामकुंड का वर्णन स्कंद पुराण में भी आता है, जिसके बारे में यह पौराणिक मान्यता है कि यहां भगवान राम रोज सुबह में स्नान किया करते थे। भगवान राम की पाठशाला भी माउंटआबू में ही है। भगवान राम महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ रहकर पढ़े थे और दोनों इसी कुंड में सुबह नहाने आया करते थे। उसी के बाद से ये कुंड रामकुंड के नाम से जाना जाता है।

इस कुंड की सबसे खास बात ये है कि इसका पानी लोग आज भी पीते है। माना जाता है कि रामकुंड का पानी कई रोगों से मुक्ति दिलाने वाला और मानसिक शांति को देने वाला होता है। रामकुंड का जल विदेशी लोग भी ले जाते है। स्थानीय लोगों की इस कुंड और उसमें पानी के प्रति गहरी आस्था है और वो इसे भगवान राम का प्रसाद मानते है।

इसके अतिरिक्त इस रामकुंड का पानी कभी भी खराब नहीं होता, इसलिए जो श्रद्धालु यहां आते है वो इस पानी को आदर के साथ अपने साथ जरूर ले जाते हैं। अर्धकाशी कहलाने वाले भगवान राम की इस नगरी में भगवान राम की लीला से जुड़े कई स्थल भी हैं।

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